Advertisements
क्या India में बढ़ रही है लड़कियों की संख्या – Indian Student Help

क्या India में बढ़ रही है लड़कियों की संख्या


Hello
Reader ये Post मैं अपनी देश India में चल रहे अतीत से वर्तमान समय में जनसँख्या
में विद्धी से Related लिख रहा हूँ जो India के महिलाएँ एवम् पुरषों में किसकी
अधिक जनसँख्या वर्तमान में है तथा वर्तमान से पहले कितने इनकी जनसँख्या थी, सभी
महत्वपूर्ण Topic को मैं अच्छे तरीके से बताने का प्रयास करूँगा जो आपको जानना ही
चाहिए. तो चलिए Start करते है इस महत्वपूर्ण Topic को और जानते है कि क्या India
में बढ़ रही है लड़कियों की संख्या???

क्या India में बढ़ रही है लड़कियों की संख्या
समाज
में आई जागरूकता के अलावा निजी और सरकारी प्रयासों से लड़कियों की स्थिति बदल रही
है. खासकर उन प्रांतो में, जहाँ बेटियों के जन्म को लेकर कई तरह के पूर्वाग्रह
पलते थे. हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और जम्मू कश्मीर में इसमें काफी मात्रा में
सुधार आया है लेकिन अब लड़कियों की जन्म दर बढ़ने से उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी
पहले से अधिक सुधार आया है. लोग बेटियों के प्रति जागरूक होते जा रहें है बेटो और
बेटिओं में अब लगभग कम ही फर्क करते नजर आ रहें है. पिछले पांच वर्षों में जन्म के
लिंगानुपात सुधरक प्रति 1000 लड़कों पर 914 लडकियाँ से बढ़कर 919 हो गया है.
हरियाणा
में वर्ष 2017 में कुल 5,09,290 जन्म बच्चों में कुल 2,43,266 लडकियाँ ने जन्म ली
है. इस संख्या के बदौलत हरियाण में लिंगानुपात 1,000 लड़कों पर 914 लडकियाँ की
संख्या पहुँच गई है.

पिछले एक दशक में यह सबसे बढ़िया सुधार हुआ है हरियाणा में,
बेटियों के प्रति लोगों का नजरिया बदला हुआ नजर आता है.

राजस्थान
में भी लडकियाँ के प्रति हालात बदलते नजर आ रहे है. राजस्थान में वर्तमान में
1,000 लड़कों पर 887 लडकियाँ है. अगर हम 10 साल पहले की बात करें तो यह आंकरा सिर्फ
847 पर ही था.
India
के सभी राज्य से अधिक बिहार राज्य में लड़कियों के प्रति नजरिया बदला है तथा ये
बिहारवासी लगभग कम ही लड़कों और लड़कियों में भेदभाव करते नजर आ रहें है. अगर हम
बिहार में प्रति लड़कों और लडकियाँ की बात करें तो ये आंकरा वर्ष 2011 के जनगणना के
अनुसार, वहाँ 1,000 लडकों पर 918 लडकियाँ थी, लेकिन यह आंकरा अब वर्तमान समय में
1,000 लड़कों पर 935 लडकियाँ की संख्या पहुँच गई है जो काबिले तारीफ है.
जम्मू
कश्मीर में 10 वर्षों में 1,000 लड़कों पर 902 लडकियाँ से बढ़कर 922 हो गया है जो
बहुत बड़ा बदलाव का संकेत करती है. पंजाब में 10 वर्ष पहले 1,000 लड़कों पर सिर्फ
734 ही लडकियाँ थी जो अब वर्तमान में 860 हो गया है जो ये भी बहुत बड़ा बदलाव की ओर
संकेत कर रही है पंजाब में.
लड़कों
और लड़कियों के बीच भेदभाव में बदलाव का सबसे बड़ा कारण है हरियाण में सबसे पहले
शुरू हुई “बेटी बचाओं, बेटी पढाओ” अभियान से इनमें आई बदलाव का नजरिया लोगों को
साफ-साफ दिख रहा है. लिंगानुपात की गड़बड़ी के लिए बदनाम पंजाब ने “बालड़ी संरक्षण”,
जम्मू कश्मीर ने “लाडली बेटी” और राजस्थान में “शुभलक्ष्मी” जैसी योजनाएँ को शुरू
कर के अपने राज्य को बेहतर साबित करने की कोशिश की जो बहुत बढ़िया परिणाम दिया
लडकियों के प्रति लोग इससे काफी जागरूक हुए है. इन सभी राज्य से प्रेरणा लेकर
India के सभी राज्य में ऐसी अभियान का शुभारम्भ किया गया जो काबिले तारीफ साबित
हुई है.


(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

महाराष्ट्र
में वर्ष 2015 में “भाग्यश्री योजना” बेहद रंग लाने लगी. वहाँ बालिका जन्म-दर में
तेजी से विद्दी दर्ज कि गई. वहाँ लिंगानुपात प्रति 1,000 लड़कों पर 867 लडकियाँ से
924 पर पहुँच गई है जो बहुत बड़ा सुधार दिख रहा है. “भाग्यश्री योजना “ से सरकार हर
गरीब के Bank Account में 21,020 रूपये जामा करती है और उन लड़की की उम्र 18 वर्ष
पुरे होने पर उन्हें एक लाख रूपये दिए जाते है.  हिमाचल प्रदेश में “बेटी है अनमोल”, आंध्र
प्रदेश में “बेटी संक्षण”, मध्य प्रदेश में “लाडली लक्ष्मी योजना” के अलावा केंद्र
सरकार ने भी इस Area के प्रति अपनी पहल की है. केंद्र सरकार के योजना “सुकन्या
समृधि योजना” और “धनलक्ष्मी योजना” ने भी लोगों को जागरूक किया है.
अब
बेटिओं के प्रति लोगों की सोच बदली है तथा उन्हें बेटों की ही तरह ही सफलता के
आसमान पर पहुँचाना चाहते है ऐसे बहुत बहादुर बेटियाँ जैसे:- कल्पना चावला, मानुषी
छिल्लर, साइना नेहवाल, साक्षी मालिक, गीता व बबिता फोगाट है. वर्तमान समय में
दुनिया में हर तरफ भारतीय बेटिओं का गुणगान किया जा रहा है. सबसे छोटी उम्र में
P.B. Sindhu ने कई कृतिमान अपने देश भारत के लिए तथा अपने नाम किए है जो साबित
करती है बेटियाँ अब किसी से कम नहीं है. भारतीय बेटिओं ने आज अपना देश का नाम हर
Area में रौशन किए है जो भारत कभी इन्हें भूल नहीं सकते है. ऐसे जवाज बेटिओं को
मैं रोहित कुमार उन्हें सलाम करता हूँ.

जिस तरह बेटिओं की संख्या बढ़ रही है ठीक उसी तरह अपराधी
मासूम बेटिओं को अपना शिकार बना लेते है जो उन्हें इसका संकेत देता है की जिस तरह
हम बेटिओं की जनसंख्या में अपनी पूर्ण रूप से भागीदारी दिए है अब हमें इनके
सुरक्षा के प्रति भी हमें जागरूक होना होगा. India में कन्या भूर्ण हत्या की
घटनाएँ तो अब पहले के अपेक्षा काफी कम जरुर हुई है लेकिन इसे पूरी तरह से बंद होना
अब भी चुनौतीपूर्ण है. महिलाएँ के खिलाप अपराधों पर अंकुश लगने के बाद ही हमारा समाज
पूरी तरह सभ्य समाज की कल्पना की जा सकती है. अगर हम सरकारी आंकरा की बात करें तो,
एक दिन में कम से कम 22 महिलाएँ दहेज के लिए जान से मार दी जाती है. हर पांच मिनट
में एक महिलाएँ घरेलू अहिंसा का शिकार बनती है. सबसे बड़ी बात तो यह है की सरकार
तथा तमाम वर्ग के लोग इस चुनौतियों से निपटने के कगार पर है. इसके अलावा लिंग
आधारित गर्भपात पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए देश में कठोर कानून लाए गए है.



शिक्षा
में 13 फीसदी बढ़ी भागीदारी  
    
शिक्षा
में महिलाएँ की भागीदारी काफी बढ़ी है. Institute तक पहुँचाने के लिए अब लड़कियों को
किसी तरह का कठिनाई का सामना करना नहीं पड़ता है. राष्ट्रीय परिवार शिक्षा
सर्वेक्षण की Report के अनुसार एक दशक पहले शिक्षा में महिलाएँ की भागीदारी 55.1%
थी जो अब बढ़कर 68.4% तक पहुँच गई है. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में School
छोड़ने वाली Girls की संख्या में काफी कमी आई है तथा ऊँच शिक्षा में Girls की
भागीदारी बढ़ी है. All India Surve On Hayer Education की वर्ष 2016 से वर्ष 2017
की Report के अनुसार देशभर में M.A. में पढ़ रहें 15.7 लाख Student में 53.4% Girls है जबकि B.ED में 66.6% Boys शामिल है.
बाल
विवाह के दर में गिरावट  
    
बाल
विवाह के खिलाप देशभर में जागरूकता अभियान के कारण इसमें काफी कमी आई है. 18 वर्ष
से कम उम्र में शादी 2005-06 में 47.4% से घटकर 2015-16 में 28.8% ही रह गई है. इस
गिरावट से महिलाओं का जीवन सुधरा है. उतराखण्ड में 10 वर्ष पहले 23% Girls की शादी
18 वर्ष से पहले हो जाती थी, लेकिन अब यह मात्र 14% पर ही है. उत्तर प्रदेश में
वर्तमान समय में हर पांच मिनट में 18 वर्ष से कम Boys And Girls की शादी हो जाती
है जो कानूनन जुर्म है.
आर्थिक
रूप से मजबूत हुई 
   
वर्तमान
समय में करीब 38% महिलाएँ अकेली या किसी के साथ मिलकर घर या जमीन का मालकिन है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकरें के अनुसार Banking व्यवस्था में
महिलाएँ की भागीदारी काफी बदली है. एक दशक पहले सिर्फ 15% ही महिलाएँ के पास Bank
Account था जो अब यह बढ़कर 53% पर जा पहुँची है.
घरेलु
हिंसा से मिल रहा है निजात
शिक्षा
और जागरूकता का असर घरेलु हिंसा पर भी पड़ा है. अब इस तरह के मामले पहले से काफी कम
हुए है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की Report के अनुसार वैवाहिक जीवन
में हिंसा झेल रही महिलाएँ का प्रतिशत 37.2 से घटकर 28.8 प्रतिशत रह गया है. एक
सर्वे के अनुसार यह भी पता चला है की अब गर्भावस्था में मात्र 3.3% महिलाएँ को ही
हिंसा का सामना करना पड़ता है.
फैसलों
में बढ़ी भागीदारी 

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

घर
में होने वाले फैसले में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. 15 से 49 वर्ष की Age में
84% विवाहित महिलाएँ फैसले में हिस्सा ले रही है. करीब 10 वर्ष पहले 2005-06 में
यह आंकड़ा  76% था..

अभी
बाकी हैं चुनौतियाँ
·         India में हर दिन 2000 से अधिक लडकियाँ
को गर्भ में ही मार दिया जाता है. गांवों से अधिक शहर के लोग इस अपराध में शामिल
है.
·         यूनिसेफ के अनुसार, India में हर साल
लगभग 45,000 महिलाएँ की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है.
·         *Canada के मेडीकल एसोसिएशन के जनरल
में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, भूर्ण के लिंग निर्धारण के कारण भारत और चीन जैसे
देशों में युवकों की संख्या में अगले 20 वर्षो के दौरान 20% की बढ़ोतरी होगी.

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

·        * India में 60 वर्ष की Age पर कर जाने
वाले 1,000 पुरुषों के मुकाबले 1,033 औरतें लैंगिक असंतुलन में रह जाते है.

     79
फीसदी महिलाएँ तथा 78 फीसदी पुरुष चाहते है एक बेटी 

   राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य
की Report के अनुसार, India में लगभग 79 फीसदी महिलाएँ तथा 78 फीसदी पुरुष कम से
कम एक बेटी जरुर चाहते है, लेकिन एक दशक पहले ऐसी स्थिति नहीं थी. 2005-06 में
India में कम से कम एक बेटी चाहने वाले महिलाएँ का आंकड़ा 74% था वही पुरुषों में
65% था. आज ग्रामीण क्षेत्रो में करीब 81% महिलाएँ एक बेटी अवश्य चाहती है वही
शहरी महिलाएँ 75% महिलाएँ ही बेटी चाहती है. 

अनूठी
पहल
 

“  मेरी बेटी, मेरी पहचान” महिला सशक्तिकरण को लेकर देश के कई
हिस्सों में “बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओ” अभियान चल रही है, लेकिन झारखंड के आदिवासी
तिरिंग गाँव में “मेरी बेटी, मेरी पहचान” अभियान चलाया जा रहा है. इस गाँव में आप
किसी का पता पूछते है, तो लोग उस परिवार के बेटी का नाम बताते हुए घर दिखाते है.
इस गाँव में घरों पर मिट्टी के Plate पर लिखें बेटियों के नाम के साथ उनकी माँ का
नाम लिखा हुआ होता है. 

    भारतीय
बेटिओं के जुबां से 
  
      मानुषी
छिल्लर
मैं चाहती हूँ की दुनिया के लोग जब मुझे
देखे, तो मेरे वे भारत के सभ्यता और परंपरा को भी देखें. दुनिया देखें की किस तरह
से भारत में किस तरह से लड़कियों के प्रति नजरिया बदल रहा है. हिन्दुस्तान की
लडकियाँ भी दुनिया को जितने का मकसद रखती है. सिर्फ रंग-रूप से कोई लड़की खुबसूरत नहीं
होती है. खूबसूरती की परिभाषा है आत्मविश्वास. कोई लड़की अगर पुरे आत्मविश्वास से
ये कह दें की मैं  खुबसूरत हूँ, तो वो
खुबसूरत है.
       मैरी कॉम
आज
महिलाएँ जो भी करती है उन्हें हतोत्साहित ही किया जाता है. मैंने अपने पिता के
माली मदद के लिए Boxing को अपना पेशा बनाया, लेकिन लोग कहते थे तुम लड़की हो, तुम
यह नहीं कर सकती. मैं लड़की को आत्मविश्वास देना चाहती हूँ कि अगर जो काम लड़के कर
सकते है, वो काम आप भी कर सकते है.
      गीता फोगाट

कई
क्षेत्र ऐसा नहीं जहाँ लड़कियों ने अपना परचम नहीं लहराया हो. बेटियो को आगे बढ़ने
के लिए सरकारी नीतिओं और खास सुविधाओं की ही नहीं, अभिभावकों को दृढ़ इच्छाशक्ति की
जरुरत है. अपनी बेटिओं को आगे बढ़ाने के लिए अभिभावक आगे आएँ. हम बहने कुश्ती में
देश में नाम रौशन कर चुकें है, तो यह सब पिता महावीर सिंह जी के हौसले से. 


(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});


आशा करता हूँ आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो, यह जानकारी आपको अच्छी लगी तो इसे Social Media पर अवश्य Share करें.

Thanks to Reading This Post

Leave a Comment