किसी भी
प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिये सिर्फ गंभीर एवं विस्तृत अध्ययन ही आवश्यक
नहीं है, अपितु यह समझना भी महत्त्वपूर्ण है कि परीक्षा के
दौरान निर्धारित घंटों में आप क्या करते हैं, और कैसे करते हैं? अतः परीक्षा घंटों में सर्वश्रेष्ठ समय प्रबंधन, विशिष्ट मानसिक एकाग्रता तथा उच्च दिमागी सक्रियता
कैसे संभव हो- यह जानना अति आवश्यक है। साथ ही, प्रश्नों की
प्रकृति को समझते हुए उन्हें समयानुसार ज़ल्दी हल करने की युक्ति अपनाना भी
महत्त्वपूर्ण है।
ऐसा देखने को मिलता है कि वर्षों-महीनों की जी-तोड़ मेहनत और अध्ययन के बावजूद अनेक
छात्र परीक्षा कक्ष में अपेक्षित आत्मविश्वास से नहीं जा पाते हैं। बेहतर
समय-प्रबंधन के अभाव में आख़िरकार उनकी सारी मेहनत धराशायी हो जाती है और वे
परीक्षा में अपना सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करने से चूक जाते हैं। आप चाहे कितनी भी
अच्छी तैयारी क्यों न कर लें, आप सफलता तभी
पाएंगे जब परीक्षा घंटों में आप औरों से बेहतर व विशिष्ट प्रदर्शन करेंगे। अतः इस
मुद्दे पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
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कक्ष में कैसे अपना 100% देकर सफल हों ?
के घंटों में आप अपनी एकाग्रता और आत्मविश्वास तभी कायम रख पाएंगे जब आप पहले से
ही परीक्षा की रणनीति पर कार्य करेंगे और परीक्षा के दौरान अपनाई जाने वाली
सावधानियों से परिचित होंगे-
कक्ष में अपनाई जाने वाली रणनीति
परीक्षा कक्ष में परीक्षा घंटों के लिये हर परीक्षार्थी की अपनी रणनीति होती है
लेकिन अनुभव की कमी (नए परीक्षार्थी) एवं बार-बार गलती दोहराने की प्रवृत्ति
(पुराने परीक्षार्थी) के चलते अधिकांश परीक्षार्थी अच्छी तैयारी के बावजूद परीक्षा
में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं।
हैं जिनको अमल में लाने पर आपके रणकौशल में इज़ाफा होने की पूरी संभावना है। जैसा
कि आपको ज्ञात हो कि परीक्षा में कितने प्रश्न पत्र हैं। कौनसा प्रश्नपत्र ज्यादा
महत्त्वपूर्ण है? विगत वर्ष के कटऑफ क्या थे।
प्रश्न हल करने हैं? परीक्षा घंटे में क्या और कैसे करना है, इस पर ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर
सेक्शनल टाइम है तो उसे कैसे हल करना है? लिखित उअर ऑनलाइन
परीक्षा में क्या सावधानी रखनी है, आदि तथ्यों पर
ध्यान रखकर परीक्षा दी जानी चाहिए।
सबसे ज़रूरी बात है परीक्षा अवधि में समय-प्रबंधन की। वैसे तो समय-प्रबंधन जीवन के
हर क्षेत्र में इंसान की बेहतरी के लिये आवश्यक है। चूँकि ‘परीक्षा’ निश्चित समय-सीमा
में अपने ज्ञान-कौशल के प्रदर्शन का ही दूसरा नाम है, इसलिये समय-प्रबंधन परीक्षा का अनिवार्य पहलू
है।
पत्र में कितने प्रश्न पूछें जाएंगे और उनके लिए कितना समय निर्धारित है। अथार्त
प्रति प्रश्नों को हल करने के लिए आपके पास कितने सेकेंड का समय है एवं प्रश्न पत्र में पूछे जाने वाले प्रश्नों की
जटिलता और गहराई कितनी है।सेक्शनल कट ऑफ पार करने के लिए कितने प्रश्नों को हल किया
जाना आवश्यक है। लिखित परीक्षा में उत्तर कितने शब्दों में लिखना है और उत्तर को
कैसे नियोजित (स्ट्रक्चर) किया जाना है।
परीक्षार्थी
को प्रति प्रश्न प्रदत्त सेकेंड के अंदर ही विकल्पों के सही उत्तर को चुनकर, उसके लिये उत्तर-पत्रक में सही गोले को काला करना होता
है। ऐसे में प्रश्न के गलत होने का खतरा तो होता ही है, साथ ही कठिन विकल्पों के कारण प्रश्नों को हल करने
में ज़्यादा समय भी लगता है। इस कारण कई दफा छात्र पूरा पेपर तक नहीं पढ़ पाते हैं।
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विकल्प इतने जटिल होते हैं कि अंत में समय-प्रबंधन खुद एक चुनौती बन जाता है।इस
चुनौती से निपटने का एक तरीका यह है कि सर्वप्रथम वही प्रश्न हल किये जाएँ जो
परीक्षार्थी की ज्ञान की सीमा के दायरे में हों। जिन प्रश्नों के उत्तर पता न हों
या जिन पर उधेड़बुन हो, उन्हें निशान लगाकर छोड़ देना चाहिये और अगर अंत में
समय बचे तो उनका उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिये, वरना उन्हें छोड़ देने में ही भलाई है।
दूसरा
तरीका यह है कि उम्मीदवार सभी प्रश्नों को हल करने का लालच छोड़कर अपने अधिकार
क्षेत्र वाले प्रश्न यानी जिन खंडों पर मज़बूत पकड़ हो, उनसे संबंधित प्रश्नों पर ही फोकस करें। हाँ, समय बचने पर अन्य खंडों के प्रश्नों पर ध्यान दिया
जा सकता है।इस मामले में छात्रों को यह सावधानी ज़रूर बरतनी चाहिये कि वे कम-से-कम
इतने खंडों का चुनाव अवश्य कर लें जिनसे सम्मिलित रूप से कटऑफ के दायरे में आ
जाएँ।
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परीक्षा भवन में प्रवेश करने से पहले परीक्षार्थी यह निश्चय ज़रूर कर लेता है कि
उसे न्यूनतम या अधिकतम कितने प्रश्न हल करने हैं। इस सोच के पीछे प्रारंभिक
परीक्षा के विगत वर्षों के कट-ऑफ आँकड़े तथा आगामी परीक्षा के संभावित कट-ऑफ का
अनुमान शामिल होता है। अनुमान लगाने के लिए आपको विगत 5 वर्षों में प्रारंभिक परीक्षा की कट-ऑफ में काफी
उतार-चढ़ाव देखने चाहिए और उस आधार पर एक राय बनानी चाहिए।
के दौरान किन बातों का ध्यान रखें?
(Answer-sheet ) मिलने के पश्चात्
उसमें दिये गए निर्देशों को ध्यान से पढ़ें। नियत स्थान पर अपना अनुक्रमांक, हस्ताक्षर तथा अन्य सूचनाएँ अंकित करें।प्रश्नपत्र
मिलते ही प्रश्नों को हल करना शुरू न करें बल्कि उसके महत्त्वपूर्ण निर्देशों को
पढ़ें। संभव है कि उन निर्देशों में कोई
महत्त्वपूर्ण और नई सूचना मिले।
के पश्चात् पुनः समय व्यवस्थित करें जिससे प्रश्नपत्र पूरा करने में समय कम न
पड़े।पहले आसान प्रश्नों या अपने पसंदीदा खंड से संबंधित प्रश्नों को हल करें, इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
जल्दी
में प्रश्नों को न पढ़ें बल्कि शांति और धैर्य के साथ प्रश्न को दो-तीन बार पढ़ें और
सुनिश्चित करें कि वास्तव में क्या पूछा जा रहा है।जिन प्रश्नों को आप पहली बार
में हल नहीं कर पाते हैं उन्हें टिक-मार्क करके छोड़ दें। फिर बचे हुए समय में
उन्हें हल करने का प्रयास करें।
करने के लिये बाद में कुछ समय बचाकर रखें।दिमाग में जो जवाब पहले आता है उसे तब तक
न बदलें जब तक कि आप को यकीन न हो जाए कि वह गलत है। माना जाता है कि पहले उत्तर
में हमारे अवचेतन मन की प्रबल भूमिका होती है। अवचेतन मन में कई ऐसी जानकारियाँ
होती हैं जिनके बारे में हमें पता नहीं होता।
मन पर आधारित उत्तर आमतौर पर ठीक होते हैं, बेशक प्रचलन की
भाषा में उन्हें तुक्का कहा जाए।कई छात्रों की आदत होती है कि वे पहले सारे प्रश्नों
को हल कर लेते हैं उसके बाद एक ही बार में उत्तर-पत्रक (Answer-sheet ) भरते हैं। ऐसे
छात्रों को सलाह दी जाती है कि वे हर 5-10 प्रश्नों के बाद
उत्तर-पत्रक (Answer-sheet ) भरते चलें वरना
आपका क्रम गलत हो जाने की या यह प्रक्रिया छूट जाने की संभावना हो सकती
है।
सर्वथा वर्जित है।निरीक्षक द्वारा दी जाने वाली अटेंडेंस शीट पर अपने हस्ताक्षर
करें तथा अपने उत्तर-पत्रक पर निरीक्षक के हस्ताक्षर भी अवश्य करवाएँ।
ही दिन में दो प्रश्न पत्र संपन्न होने हैं तो प्रथम प्रश्नपत्र की समाप्ति के
पश्चात् मिले अंतराल में पेपर-1 के सही-गलत
प्रश्नों को लेकर ज़्यादा माथापच्ची न करें। बेहतर होगा कि कुछ तरल पदार्थ ग्रहण कर
अगले पेपर की तैयारी में जुट जाएँ या फिर आराम करें।पहले और दूसरे पेपर के बीच के
समय में ‘गैप इनर्शिया’ या फिर से ‘एग्ज़ाम फोबिया’ का शिकार न हों
बल्कि अपने आत्मविश्वास को उस दौरान भी बनाए रखें।
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इस
प्रकार, एक सुनियोजित रणनीति के ज़रिये परीक्षार्थी परीक्षा
भवन में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर अपनी सफलता सुनिश्चित कर सकते हैं, बशर्ते वे अपने मस्तिष्क में अनावश्यक भ्रम, चिंता या तनाव को स्थान न दें।
अन्य सुझाव
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को यह समझना ज़रूरी है कि यदि परीक्षा में प्रश्न पत्र कठिन आया है तो यह सभी के
लिये समान रूप से कठिन है। इसलिये किसी छात्र विशेष को इस मामले में अतिरिक्त तनाव
लेने की बजाय परीक्षा भवन की अपनी रणनीति पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिये।कोई भी
परीक्षा सरल या कठिन आपकी तैयारी, रणनीति व मनोदशा
के अनुरूप ही होती है।
तो तय मानिये कि आपकी मनोदशा कभी भी परीक्षा को लेकर तनावग्रस्त नहीं होगी। अतः
डरना छोड़कर लड़ने को तैयार रहें।संभव है कि परीक्षा से एक दिन पहले छात्र तनाव
महसूस करें। चूँकि यह सबके साथ होता है, अतः इसे लेकर
बहुत ज़्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है।
सकारात्मक योगदान भी देता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एक निश्चित स्तर का तनाव
हमारे निष्पादन/प्रदर्शन को बढ़ाता है किंतु उससे ज़्यादा तनाव प्रदर्शन को कम भी कर
देता है।कहने का तात्पर्य यह है कि थोड़ा तनाव या डर आपको सतर्क बनाए रखता है तथा
लक्ष्य को भूलने नहीं देता है। ‘परीक्षा’ इसी का नाम है।
इस संदर्भ में फिक्र करने की बजाय इसे सकारात्मक दिशा प्रदान कर जीत सुनिश्चित
करनी चाहिये। याद रखें डर के आगे ही जीत है !प्रतियोगी परीक्षा एक बड़ा मंच है।
इसके लिये उम्मीदवार वर्षों अध्ययनरत रहते हैं। किंतु कई दफा बेहतर तैयारी के
बावजूद परीक्षा भवन में जाने से पूर्व उन्हें लगता है, जैसे वो सब कुछ भूल गएँ हो, उन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा हो तथा दिमाग सुन्न-सा हो रहा हो.
आपका मित्र कोई प्रश्न पूछता लेता है और आप उसका सही जवाब नहीं दे पाते है तो आपका
आत्मविश्वास न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाता है. इस प्रकार की प्रस्थिति छात्रों के लिए पीड़ादायक होता है, किन्तु यहाँ सबसे मजेदार बात यह है कि इस अवधि में
भूलना या याद ना आना एक तात्कालिक स्थिति होती है. तात्कालिक रूप से परीक्षार्थी
को भले लगें की वो सब कुछ भूल गएँ है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता है.
ने जो पढाई की है उनके समस्त चीजें उनके अवचेतन मन में जामा रहती है. अत्यधिक तनाव
के वजह से भले वो “एक्टिव मोड” में नहीं रहें लेकिन
परीक्षा भवन में प्रश्न देखते ही आप पाएँगे कि वह जानकारी प्रश्नों से कनेक्ट होते
ही कैसे सक्रीय हो जाती है.
के मन से यह भ्रम निकाल देना चाहिए कि we सब कुछ भूल गए
है. याद रहें, ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता, न ही उसका लोप होता है. बस सही रणनीति के जरिये उसे
सक्रीय रखना होता है. स्मरण रखें कि प्रतियोगी परीक्षा सिर्फ छात्रों का ज्ञान और
व्यक्तित्व का ही नहीं बल्कि उनके धैर्य, साहस और जुझारूपन का भी परीक्षण करती है.
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परीक्षा नहीं होती छात्र को गौरवान्वित करने तथा उनकी योग्यता-क्षमता -प्रतिभा को सम्मामित का एक मंच भी है. यही इसका सौन्दर्य है, यही इसका वैशिष्ट्य है.
इसमें क्या घबराना . परीक्षा के प्रथम पड़ाव यानि प्रारंभिक परीक्षा में लेशमात्र
कोताही या किंचित मात्र कमजोरी भी आपके सपनों को चकनाचूर कर सकती है. प्रतियोगी परीक्षा में जितने का शर्त सिर्फ पढ़ाकू होना ही
नहीं जुझारू होना भी है. याद रखिए रणभेरी बजने पर सच्चा सैनिक कभी भी पीठ नहीं
दिखाता बल्कि अपनी सम्पूर्ण शक्ति समेटकर मैदान में डट कर खड़ा हो जाता है और आपकी
तैयारी तो मुकम्मल है, रणनीति, वैज्ञानिक व
व्यावहारिक है, फिर डर किस बात का???
अंतिम समय में छात्र गुण का परिचय दीजिए और प्रतियोगी परीक्षा का किला फतह कीजिए.
ध्यान रहें, जीतता वही है जो अपनी सम्पूर्ण शक्ति और सही रणनीति
के साथ लड़ता है, वरना आधे अधूरे मन से कभी भी सफलता प्राप्त नही की
जा सकती है.
उत्तरप्रदेश ) से मौर्या गुप्ता सर ने Send किए है. ये पेशे
से एक Teacher है जो अपनी
नजदीकी Institute में बच्चों को
शिक्षा प्रदान करते है. इनका सपना है अपनी जीवनकाल में अपने साथ औरों को बुलंदियों
पर पहुँचाना तथा उनकी मदद करना. हमारें Website मौर्या गुप्ता सर को तहे दिल से शुक्रियादा करता है
इस Website पर Guest Post Send करने के लिए.
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आशा करता
हूँ कि आपको यह जानकरी अच्छी लगी होगी तथा आपको यह जानकारी आपकी परीक्षा को सरल
बनाएगी.
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